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प्रथम नवरात्र शैलपुत्री
नवदुर्गाओं में पहला नाम शैलपुत्री का है जो गिरिराज हिमालय की पुत्री हैं। नवरात्र के पहले दिन भक्तगण इनकी आराधना एवं उपासना करते हैं।
अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष के यहां कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। माता की शक्तियां अनंत हैं।
एक बार दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ करवाया। उसमें सभी देवताओं को बुलाया किन्तु क्रोधवश शंकर जी को नहीं। सती ने पिता जी के यहां यज्ञ में जाने की इच्छा जाहिर की। शंकर जी के काफी समझाने पर भी सती नहीं मानीं। उन्होंने पिता के यहां पहुंचकर देखा कि परिवारजनों का उनके प्रति व्यवहार ठीक नहीं। यह देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से भर उठा। तब उन्हें भगवान शंकर की याद आई और उन्होंने उसी क्षण योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर लिया और सती हो गईं। उसके बाद से इन्हें सती नाम से जाना गया। शंकर जी सहन न कर सके। उन्होंने अपने गणों को भेजकर यज्ञ को पूर्णत: तहस-नहस करवा दिया। सती ने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस प्रकार वे शैलपुत्री मानी जाती हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन भक्त अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। और श्रद्धा भक्ति के साथ इनका पूजन करते हैं। इस श्लोक का पाठ किया जाता है —
‘वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।’
मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। अपने भक्तों की यह सदैव रक्षा करती हैं।
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