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छठ पर्व पर करें सूर्य की पूजा 
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सूर्य देव सभी ग्रहों के राजा हैं। इन्हें सूर्य नारायण भी कहा जाता है पुराणों की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने ही सूर्य रूप में जन्म लिया था।
सूर्योपनिषद् में सूर्य को ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र का स्वरूप माना गया है। माना जाता है कि उदयकालीन सूर्य ब्रह्मा रूप में होते हैं। दोपहर में सूर्य विष्णु रूप में और संध्या के समय संसार का अंत करने वाले रूद्र रूप में होते हैं।
जिन लोगों को सूर्य ग्रह के कुप्रभाव के कारण पारिवारिक जीवन एवं करियर में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है उनके लिए उगते सूर्य को जल देना उत्तम माना जाता है।
धन की प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को दोपहर के समय लाल फूलों के साथ सूर्य देव को जल देने का विधान है। मोक्ष की आकांक्षा रखने वालों के लिए संध्या कालीन सूर्य की उपासना उत्तम बताई गई। इन तीनों सिद्घियों को पाने के लिए ही प्राचीन काल में तीनों समय सूर्य की पूजा की जाती थी।
रविवार का दिन सूर्य उपासना के लिए सबसे उत्तम माना गया है।
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इस दिन सूर्य को जल चढ़ाने, मंत्र का जाप करने और सूर्य नमस्कार करने से बल, बुद्धि, विद्या, वैभव, तेज, ओज, पराक्रम व दिव्यता आती है। प्रस्तुत है 'राष्ट्रवर्द्धन' सूक्त से लिया गया सूर्य का दुर्लभ मंत्र -
'उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वच:।
यथाहं शत्रुहोऽसान्यसपत्न: सपत्नहा।।
सपत्नक्षयणो वृषाभिराष्ट्रो विष सहि:।
यथाहभेषां वीराणां विराजानि जनस्य च।।'
अर्थ : यह सूर्य ऊपर चला गया है, मेरा यह मंत्र भी ऊपर गया है, ताकि मैं शत्रु को मारने वाला बन जाऊं।
प्रतिद्वन्द्वी को नष्ट करने वाला, प्रजाओं की इच्छा को पूरा करने वाला, राष्ट्र को सामर्थ्य से प्राप्त करने वाला तथा जीतने वाला बन जाऊं, ताकि मैं शत्रु पक्ष के वीरों का तथा अपने एवं पराए लोगों का शासक बन सकूं।
सूर्य को नित्य रक्त पुष्प डाल कर अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य द्वारा विसर्जित जल को दक्षिण नासिका, नेत्र, कान व भुजा को स्पर्शित करें।
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